रात की ड्युटी के बाद लुटा पिटा सा अपने आशियाने की ओर अग्रसर था। रास्ते में पड़ने वाले जाफराबाद इलाके में बस पहुची तो मन प्रसन्न हो गया। चारों और खुशियां ही खुशियां दिखाई दे रही थी। सड़क पर लकदक कुरते-पायजामे में चमकते बच्चे, बुढे़ और जवान। सरगई बाटते लोग... गले मिलते लोग....सभी अपनी खुशियों में मस्त। ऐसा लग रहा था मानों पूरी दिल्ली ही जश्न में डूबी हो। घरों के सामने शादी का सा माहौल... हर कोई अपने- अपने हिसाब से अधिक खरचा करने में व्यस्त....देख कर अच्छा लगा।
लेकिन रास्ते में एक जगह ऐसी आयी कि बरबस निगाह ठहर सी गयी। कम से कम बीस बच्चे.. सभी की उम्र लगभग ५ से ७ बरस की रही होगी। कपड़े शरीर पर नाम को ही थे। मैल इतना चढ़ा था मानों नहाना शब्द तो उनके शब्दकोष में होगा ही नही। सभी जल्दी-जल्दी कुछ समेंटने की होड़ में लगे थे। लेकिन क्या? यह मेरे लिए कौतुहल का विषय लगभग ५ मिनट तक बना रहा। क्योकि उनके बीच में क्या था देख पाना मुशि्कल था। बेचैनी बढ़ी तो पुरा फोकस किया उनके पैरों के बीच थोड़ी सी खाली रह गयी जगह पर। कारण समझ में आया तो पुरे शरीर में सिरहन सी दौड़ गयी। सभी के सभी कुड़े के ढे़र से अपने दिनभर की रोटी तलाश रहे थे। कहने का मतलब है ...घर की ओर जाते हुए रास्ते में एक ऐसी जगह पड़ती है जहां बस अगर रुक गयी तो बस में सवार सभी लोग अपनी नांक-मुंह कस कर दबोच लेते है। कारण? संड़ाध। वह जगह कसाईखाने से निकले गंद..यानि काटे गये जानवरों की आतंड़ियां फैकने की जगह। और उस नरक में वो बच्चे ईद की खुशियां ढुढ़ रहे थे। कुछ को दो-चार बोटी हाथ लग गयी तो मानो पुरी दुनिया भर की खुशियां उनकी झोली में आ गिरी हो। जिनकें हाथ कुछ नही लगा उनकी उदासी देखकर सहन शक्ति, भावनाओं का सैलाब जवाब दे रहा था।
राष्टपति जी ने प्रधानमंतरी जी , सोनिया जी। सभी ने देश भर को ईद की शुभकामनाए दी। लेकिन उन बच्चों को इनकी बधाई से क्या लेना देना। बधाईयों से उनका पेट नही भरने वाला। उन्हें खुशियां नही मिलने वाली। इस देश के रहनुमा गर कर सके तो इतना इंतजाम कर दे कि हर गरीब को पेट भर रोटी, रहने के लिए छत, और तन को ढंकने के लिए कपड़ा मिल जाए, खुशियों के मौकों पर जरुरत भर पुरी हो जाए। केवल इतना कर दे।
Friday, December 21, 2007
Thursday, October 25, 2007
उम्रकै़द...बम्पर आफर....
सेल...सेल...सेल...
त्यौहारों का मौसम हैं। हर तरह के आफरों की भरमार है। कोई सोना गिफ्ट दे रहा है। कोई नगद ईनाम...
लेकिन इन दिनों इनडियन ज्युडिशियरी लिमिटेड के धमाल की तो चारों तरफ धूम है...उम्रकैद छप्पर फा़ड के...
केवल एक दिन चली इस छुट का लोगों ने जमकर फा़यदा उठाया...पुरे देश में आफर को कैश कराने की होड़ सी लगी। लेकिन बाजी़ हाथ लगी कानपुर वालो के ...पुरे पन्द्रह लोगों ने छुट का लाभ उठाया। और पहले स्थान पर रहे। दुसरा स्थान मिला कोयम्बटूर को जहां दस लोगों ने इस मौके का फायदा उठाया। दिल्ली वाले थोड़ा अनलकी रहे और एक नंबर से चूक गये उन्हें तीसरे स्थान से ही संतोष करना पडा़। यहां पुरे नौ लोगों ने सफलता प्राप्त की। युपी वाले इस मामले में थोड़ा मायुस ज़रुर हुए होगे...केवल चार लोग ही आफर का लाभ ले सके।
लेकिन आप निराश न हो... त्यौहारों का सीजन है इनडियन ज्युडिशियरी लिमिटेड पीछे नही रहने वाली...कई बडे़ आफर अभी घोषित होने बाकी है...इतंजार किजिए.......
त्यौहारों का मौसम हैं। हर तरह के आफरों की भरमार है। कोई सोना गिफ्ट दे रहा है। कोई नगद ईनाम...
लेकिन इन दिनों इनडियन ज्युडिशियरी लिमिटेड के धमाल की तो चारों तरफ धूम है...उम्रकैद छप्पर फा़ड के...
केवल एक दिन चली इस छुट का लोगों ने जमकर फा़यदा उठाया...पुरे देश में आफर को कैश कराने की होड़ सी लगी। लेकिन बाजी़ हाथ लगी कानपुर वालो के ...पुरे पन्द्रह लोगों ने छुट का लाभ उठाया। और पहले स्थान पर रहे। दुसरा स्थान मिला कोयम्बटूर को जहां दस लोगों ने इस मौके का फायदा उठाया। दिल्ली वाले थोड़ा अनलकी रहे और एक नंबर से चूक गये उन्हें तीसरे स्थान से ही संतोष करना पडा़। यहां पुरे नौ लोगों ने सफलता प्राप्त की। युपी वाले इस मामले में थोड़ा मायुस ज़रुर हुए होगे...केवल चार लोग ही आफर का लाभ ले सके।
लेकिन आप निराश न हो... त्यौहारों का सीजन है इनडियन ज्युडिशियरी लिमिटेड पीछे नही रहने वाली...कई बडे़ आफर अभी घोषित होने बाकी है...इतंजार किजिए.......
Wednesday, October 24, 2007
जीवन एक मज़ाक..
जीवन एक मज़ाक.......
आए दिन ख़बर सुनने को मिल जाती है फ़ला मरीज के पेट में डाक्टर ने तौलिया छोडा...
फंला मरीज के पेट में कैची छोडी..
आज एक और ख़बर मिली... डाक्टर ने आपरेशन के दौरान नौ महीने के बच्चे के फेफड़े में लाकेट छोडा़..
डाक्टर है इलाज करते है ....
अगर हो जाए तो....
मरीज है इंसान कहलाएगा...
किस्मत से बच जाए जो...
सुफी पेशा है ...
मगर पेशेवर सुफी नही रहे...
इनका मकसद सिफॆ इतना है...
माया को जीतना है...
जान जिसकी जाती है जाए...
बस केवल माया आ जाए....
आए दिन ख़बर सुनने को मिल जाती है फ़ला मरीज के पेट में डाक्टर ने तौलिया छोडा...
फंला मरीज के पेट में कैची छोडी..
आज एक और ख़बर मिली... डाक्टर ने आपरेशन के दौरान नौ महीने के बच्चे के फेफड़े में लाकेट छोडा़..
डाक्टर है इलाज करते है ....
अगर हो जाए तो....
मरीज है इंसान कहलाएगा...
किस्मत से बच जाए जो...
सुफी पेशा है ...
मगर पेशेवर सुफी नही रहे...
इनका मकसद सिफॆ इतना है...
माया को जीतना है...
जान जिसकी जाती है जाए...
बस केवल माया आ जाए....
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